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Saturday 26 July 2014

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
(१९१६-१९९८)
जन्म- १ दिसंबर १९१६ को रोहता आगरा में।
देहांत- २९ अगस्त १९९८।
प्रकाशित रचनाएँ- ६ काव्यसंग्रह, २ खंड काव्य, २६ बाल साहित्य की पुस्तकें, ३ कथा संग्रह, ५ पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए, ३ शिक्षा पुस्तकें और ग्रंथावली ३ भागों में।

                       शिक्षा और कविता को समर्पित द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का जीवन बहुत ही चित्ताकर्षक और रोचक है। उनकी कविता का प्रभाव सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार कृष्ण विनायक फड़के ने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में प्रकट किया कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी शवयात्रा में माहेश्वरी जी का बालगीत 'हम सब सुमन एक उपवन के' गाया जाए। फड़के जी का मानना था कि अंतिम समय भी पारस्परिक एकता का संदेश दिया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश सूचना विभाग ने अपनी होर्डिगों में प्राय: सभी जिलों में यह गीत प्रचारित किया और उर्दू में भी एक पुस्तक प्रकाशित हुई, जिसका शीर्षक था, 'हम सब फूल एक गुलशन के', लेकिन वह दृश्य सर्वथा अभिनव और अपूर्व था जिसमें एक शवयात्रा ऐसी निकली जिसमें बच्चे मधुर धुन से गाते हुए चल रहे थे, 'हम सब सुमन एक उपवन के'। किसी गीत को इतना बड़ा सम्मान, माहेश्वरी जी की बालभावना के प्रति आदर भाव ही था। उनका ऐसा ही एक और कालजयी गीत है- वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो। उन्होंने बाल साहित्य पर 26 पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त पांच पुस्तकें नवसाक्षरों के लिए लिखीं। उन्होंने अनेक काव्य संग्रह और खंड काव्यों की भी रचना की।

बच्चों के कवि सम्मेलन का प्रारंभ और प्रवर्तन करने वालों के रूप में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का योगदान अविस्मरणीय है। वह उप्र के शिक्षा सचिव थे। उन्होंने शिक्षा के व्यापक प्रसार और स्तर के उन्नयन के लिए अनथक प्रयास किए। उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनाकर उन्हे याद करते रहने के उपक्रम दिए। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' जैसे महाकवि पर उन्होंने बड़े जतन से वृत्त चित्र बनाया। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उसे उन्होंने पूरा किया। बड़ों के प्रति आदर-सम्मान का भाव माहेश्वरी जी जितना रखते थे उतना ही प्रेम उदीयमान साहित्यकारों को भी देते थे। उन्होंने आगरा को अपना काव्यक्षेत्र बनाया। केंद्रीय हिंदी संस्थान को वह एक तीर्थस्थल मानते थे। इसमें प्राय: भारतीय और विदेशी हिंदी छात्रों को हिंदी भाषा और साहित्य का ज्ञान दिलाने में माहेश्वरी जी का अवदान हमेशा याद किया जाएगा। वह गृहस्थ संत थे।

द्वारिकाप्रसाद माहेश्‍वरी के व्‍यक्‍तित्‍व और कृतित्‍व पर सुपरिचित आलोचक और कवि डॉ.ओम निश्‍चल ने एक पुस्‍तक लिखी है, जिसका शीर्षक है: ‘द्वारिकाप्रसाद माहेश्‍वरी: सृजन और मूल्‍यांकन', जिसका प्रकाशन किताबघर प्रकाशन, 24, अंसारी रोड, नई दिल्‍ली ने किया है। इसके अतिरिक्‍त डॉ.ओम निश्‍चल ने तीन खंडों में ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्‍वरी रचनावली’ का संपादन भी किया है, जिसका लोकार्पण तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा ने किया था। 'आजकल' के नवम्‍बर, 2010 अंक में 'हिंदी के कीतिस्‍तंभ' शीर्षक लेखमाला के लिए लिखा गया डॉ.निश्‍चल का आलेख भी माहेश्‍वरी जी के बहुआयामी बाल साहित्‍य पर विस्‍तार से प्रकाश डालता है।

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