sss

പുതിയ പാഠപുസ്തകവും അധ്യാപക സഹായിക്കും ഡൗണ്‍ലോട്സില്‍....... .

Saturday 26 July 2014

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" : तोड़ती पत्थर

सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" : तोड़ती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर
देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर -
वह तोड़ती पत्थर ।

कोई न छायादार
पेड़, वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
गुरु हथौड़ा हाथ
करती बार बार प्रहार;
सामने तरु - मालिका, अट्टालिका, प्राकार ।

चड़ रही थी धूप
गरमियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू
रुई ज्यों जलती हुई भू
गर्द चिनगी छा गयी

प्रायः हुई दुपहर,
वह तोड़ती पत्थर ।

देखते देखा, मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार
देखकर कोई नहीं
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोयी नहीं
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार ।
एक छन के बाद वह काँपी सुघर,
दुलक माथे से गिरे सीकार,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -
'मैं तोड़ती पत्थर' 

No comments:

Post a Comment